एक युवक था। उस को जीवन से बड़ी ख्वाहिशें थीं। उसे लगता था कि उसे बचपन में वह सब नहीं मिल सका जिसका वह हकदार था। बचपन निकल गया, किशोरावस्था में आया वहां भी उसे बहुत कुछ अधूरा ही लगा। उसे महसूस होता कि उसकी बहुत सारी इच्छाएं पूरी नहीं हो सकीं। उसके साथ न्याय नहीं होता।
(मनुष्य की इच्छाएं अनंत होती हैं। एक इच्छा पूरी होने पर दूसरी इच्छा पैदा हो जाती है। यह एक ऐसा चक्र है जिससे निकलना बहुत मुश्किल होता है। संतुष्ट रहना सीखें, जो कुछ आपके पास है, उसके लिए आभारी रहें।)
इसी असंतोष की भावना में युवा हो गया। उसे लगता था जब वह अपने पैरों पर खड़ा होगा तो सारी इच्छाएं पूरी करेगा। वह अवस्था भी आएगी। पर उसकी इच्छाएं इतनी थीं कि लाख कोशिशों पर भी वह पूरा नहीं कर पा रहा था।वह युवक बेचैन रहने लगा। इसी बीच किसी सत्संगी के संपर्क में आया और उसे वैराग्य हो गया। वह स्वभाव से और कर्म दोनों से संत हो गया। संत होने से उसे किसी चीज की लालसा ही न रही।
जिन संत की संगति से उसमें वैराग्य आया था, वह लगातार भगवान की भक्ति में लगे रहते। उनकी इच्छाएं (जरूरतें) बहुत थोड़ी थीं। वह पूरी हो जातीं तो वह योग, साधना और यज्ञ-हवन करते। इस युवक में भी वह गुण आ गए। अब वह भी संत हो गए। इससे उन्हें मानसिक सुख मिलने लगा और उसमें दैवीय गुण भी आने लगे। अब वह भी एक बार वह ईश्वर की लंबी साधना में बैठे।
इनकी साधना से एक देवता प्रसन्न हो गए। उन्होंने दर्शन दिए और कोई इच्छित वरदान मांगने को कहा।
संत ने कुछ पल सोचा फिर देवता से बोले कि मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।
देवता ने प्रश्न किया- जहां तक मैं जानता हूं आपकी ज्यादातर आकांक्षाएं पूरी ही न हो सकी हैं।
इस पर संत ने कहा- जब मेरे मन में इच्छाएं थीं तब तो कुछ मिला ही नहीं । अब कुछ नहीं चाहिए तो आप सब कुछ देने को तैयार है। आप प्रसन्न हैं यही काफी है। मुझे कुछ नहीं चाहिए।
देवता मुस्कुराने लगे.उन्होंने कहा- इच्छा पर विजय प्राप्त करने से ही आप महान हुए। भगवान और आपके बीच की एक ही बाधा थी, आपकी अनंत इच्छाएं।
उस बाधा को खत्म कर आप पवित्र हुए मुझे स्वयं परमात्मा ने भेजा है। इस लिए आप कुछ न कुछ स्वीकार करके हमारा मान अवश्य रखें। संत ने बहुत सोच-विचारकर कहा- मुझे वह शक्ति दीजिए कि यदि मैं किसी बीमार व्यक्ति को स्पर्श कर दूं तो वह भला-चंगा हो जाए। किसी सूखे वृक्ष को छू दूं तो उसमें जान आ जाए। देवता ने कहा- आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा।
वरदान देकर देवता चलने को हुए तो संत ने कहा- रुकिए मैं अपना विचार बदल रहा हूं।
देवता को लगा क्या इसमें फिर से लालसा पैदा हो गईं। उन्होंने कहा- अब क्या विचार किया है, बताएं। आपको एक अवसर विचार बदलने का मैं देता हूं। संत ने कहा- मैं अपने वरदान में संशोधन चाहता हूं.। मैंने आपसे मांगा कि यदि मैं बीमार व्यक्ति को छूं दूं तो उसे स्वास्थ्य लाभ हो जाए। सूखे वृक्ष को छूं दूं तो हरा भरा हो जाए।
मैं इस वरदान में एक संशोधन यह चाहता हूं कि रोगी और वृक्ष का कल्याण मेरे छूने से नहीं मेरी छाया पड़ने ही होने लगे और मुझे इसका पता भी न चले
देवता को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा- क्या आप ऐसा इसलिए मांग रहे हैं क्योंकि आप किसी मलिन या बीमार को स्पर्श करने से बचना चाहते हैं ?
संत ने कहा- ऐसा बिल्कुल नहीं है। रोगी या मलिन व्यक्ति से दूर रहने के लिए नहीं मैं ऐसा मांग रहा। मैं नहीं चाहता कि संसार में यह बात फैले कि मेरे स्पर्श करने से लोगों को लाभ होता है।
एक बार यह बात फैली तो फिर संसार में मुझे लोग एक चमत्कारिक शक्तियों वाला सिद्ध प्रचारित कर देंगे। मैं लोगों का कल्याण तो चाहता हूं लेकिन उस कल्याण के साथ मेरी प्रसिद्धि हो यह नहीं चाहता।
देवता ने प्रश्न किया- पर आप ऐसा क्यों चाहते हैं। इससे क्या नुकसान हो सकता है।
संत बोले- शक्ति का अहसास मन को मलिन करके कुच्रकों की रचना शुरू करता है चाहे वह कोई दैवीय सिद्धि ही हो क्यों न हो। यदि प्रचार शुरू हुआ और मेरे मन में श्रेष्ठता का अभिमान होने लगा तो फिर यह वरदान मेरे लिए शाप बन जाएगा। इससे तो अच्छा है कि लोगों का कल्याण चुपचाप ही हो जाए। न मुझे पता चलेगा न अभिमान की संभावना रहेगी।
देवता प्रसन्न हो गए। उन्होंने कहा- परमात्मा ने ऐसे वरदान के लिए सर्वथा योग्य व्यक्ति का चयन किया है। आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।
जब आपकी किसी चीज के लिए बहुत ज्यादा इच्छा होती है तब वह वस्तु आसानी से नहीं मिलती। लालसा घटते ही वह सरलता से उपलब्ध होने लगती है।
बहुत ज्यादा इच्छाएं मानसिक अशांति का कारण बनती हैं। परोपकार का भाव रखना बहुत अच्छा है लेकिन उस परोपकार के बदले उपकार का भाव रखना लालसा है।
तृष्णा आते ही आपकी परोपकार की क्षमता कम हो जाती है।
परमात्मा मनुष्य की तरह-तरह से परीक्षा लेते हैं। किसी दिन परमात्मा ने सच में कोई दैवीय शक्ति देने का मन बना लिया तो इस कथा को याद रखिएगा। परमात्मा उसी को चमत्कारी शक्तियां देते हैं जो इसका प्रयोग परमार्थ के लिए करता है।
परमात्मा मनुष्य की तरह-तरह से परीक्षा लेते हैं। किसी दिन परमात्मा ने सच में कोई दैवीय शक्ति देने का मन बना लिया तो इस कथा को याद रखिएगा। परमात्मा उसी को चमत्कारी शक्तियां देते हैं जो इसका प्रयोग परमार्थ के लिए करता है।
SARAL VICHAR
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