यदि हम सोचकर देंखें कि स्कूल, कॉलेज से निकलकर जिन्हें नौकरी मिली, सफलता मिली, उसमें कितना प्रतिशत ज्ञान स्कूल, कॉलेज का है? आश्चर्य होगा यह जानकर कि केवल 15% शिक्षा काम में आई। जो स्कूल कॉलेज से हासिल की। और 85% बाहर की बातें थी। जिसमें
1. जीवन को देखने का दृष्टिकोण,
2. काम करने का अलग ढंग और
3. आत्मविश्वास
परंतु आज तक हमारे स्कूल, कॉलेज में ऐसा कोई विषय नहीं है जिसमें बच्चों को दृष्टिकोण सिखाया जाता है।
एक ही काम को अलग-अलग तरीके से कैसे करें यह सिखाया नहीं जाता।
एक ही विषय को दस तरीकों से कैसे देखें, यह कला नहीं दी जाती।
सोचने की कला, एकाग्रता, इच्छा शक्ति को बढ़ाने की कला नहीं सिखाई जाती।
परंतु
हमारी संपूर्ण शक्ति और पैसा 15% ज्ञान पर लगाया जा रहा है।
महत्वपूर्ण है कि हमारा दृष्टिकोण बदले। हर स्कूल, कॉलेज से विद्यार्थी बाहर आए तो नए ढंग से काम कर पाना उनके लिए आसान हो।
85% ज्ञान का महत्व है, काम को अलग ढंग से करने का।
हर एक अलग काम कर, यह जरुरी नहीं। लेकिन हर एक वही काम, अलग ढंग से करे, यह महत्वपूर्ण है।
अगर बच्चों को बचपन में ही पढ़ाई के अलग-अलग तरीके सिखाएं तो बच्चा कभी पढ़ाई करने से बोरियत महसूस नहीं करेंगे। वर्ना बच्चे पढ़ाई करने का एक ही तरीका जानते हैं पढ़ाई का रट्टा लगाते हैं, परिक्षा देते हैं और मुक्ति पाते हैं।
क्योंकि बच्चे तो केवल मुक्ति पाने के लिए ही याद कर रहे हैं, परिक्षा दे रहे हैं। हम कभी यह नहीं सोचते कि क्या पढ़ाई करने के हजार तरीके हो सकते हैं? जिससे बच्चों को पढ़ने में आनंद आए और उनका विकास हो ।
बच्चों को यही शिक्षा मिले, जो 85% पढ़ाई का
हिस्सा, जो छूट चुका है, वही मार्गदर्शन उन्हें जीवन में भी काम आए। ऐसे
लोग ही जीवन में आगे बढ़ पाएंगे, नए ढंग से सोच पाएंगे और सफलता पाएंगे।
दूसरी जागृती अंधश्रद्धा से
वास्तुशास्त्र,
ज्योतिष शास्त्र, जेमोलॉजी, न्यूमरोलॉजी, नक्षत्र, क्रिस्टल, फेंगशूई
ईत्यादि विज्ञान हैं। लेकिन लोगों के लिए अंधश्रद्धा बन चुके हैं। उदा. किसी
की दुकान है, घर है, तो वह सोचेगा कि दरवाजा किंस दिशा में हो? गाड़ी लेनी
है तो नंबर कौनसा हो ? शादी करनी है तो कुंडली मिलती हो। फिर अंगूठी कौनसी
पहनें? किसी कार्य के लिए शुभ मुहूर्त कौनसा सा हो ?... इत्यादि । हर
छोटी-छोटी बात पर मुहूर्त देखा जाता है। किसी ने अधूरी समझ और ज्ञान से कुछ
बताया, तो वही मानकर पूरी जिंदगी कट जाती है। क्योंकि हर क्षण, हर पल, वह इसी दुविधा में है कि ये करूं... या न
करूं?
उपरोक्त सभी विज्ञानों का परिणाम हमारे जीवन में 10% तक होता है।
हम पढ़ कर बस किसी चीज़ का अनुमान लगा सकते है, और उस को कर के हम उसके सही या गलत होने पर विश्वास कर सकते हैं, किताबों में जो लिखा है जब तक आप उसको व्यवहार में नही लाओगे तब तक उन पढ़ी गयी बातों का फायदा नहीं।
सर श्री तेज पारखी जी
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एक बार डब्बूजी ने ख़ब्बूजी से पूछा ,
कॉमन सेंस क्या होता है , मालूम है ?
जवाब मिला- नहीं
अरे इतनी छोटी सी बात नहीं मालूम , चल तुझे बताता हूँ।
कहकर डब्बूजी ने अपना हाथ दिवार पर रखा और ख़ब्बूजी से जोर से हाथ पर मारने को कहा ।
जैसे ही खब्बूजी ने मारा , डब्बूजी ने तभी अपना हाथ हटा लिया और ख़ब्बूजी का हाथ दिवार से जा टकराया , थोड़ी चोट भी लगी।
देख इसे कहते है कॉमन सेंस , आया समझ में।
अब ख़ब्बूजी के दिमाग में अक्ल का कीड़ा कुलबुलाया , उन्होंने तुरंत आसपास देखा तो राजेश नज़र आया ।
अरे , तुझे मालूम है कॉमन सेंस किसे कहते हैं
भईया यह वाला सेंट तो हमने कभी यूज़ ही नहीं किया..
अरे सेंट नहीं.. कॉमन सेंस ,
नहीं भैय्या नहीं पता ,
चल बताता हूँ , कहकर ख़ब्बूजी ने इधर उधर देखा , मगर आसपास कोई दिवार नज़र नहीं आयी। अब वे सोच में पड़ गये, तभी उनके दिमाग में एक आईडिया आया।
उन्होंने तुरंत अपने मुंह पर हाथ रखा और बोला , मार जोर से ,
राजेश ने जोर से मुक्का मारा। ख़ब्बूजी ने तुरंत अपना हाथ हटा लिया , मुक्का उनके मुंह पर जा लगा , आगे के दो दांत शहीद हो गये ।
ख़ब्बूजी बोले, अरे कुछ गड़बड़ हो गयी, वैसे कॉमन सेंस इसी को कहते हैं।
बस , ऐसी ही गलतियों से सीख सीख कर कॉमन सेंस बढ़ता है।
SARAL VICHAR
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