Ticker

7/recent/ticker-posts

अवधूत दत्तात्रेय के 24 गुरु | AVDHUT DUTTATREY KE 24 GURU | 24 GURUS OF AVDHOOT DATTATREYA | SARAL VICHAR


अवधूत दत्तात्रेय के 24 गुरु

अवधूत दत्तात्रेय के 24 गुरु | 24  GURUS OF AVDHOOT DATTATREYA  - www.saralvichar.in

अवधूत- जिसने उन सभी बंधनों को छोड़ दिया जो नाशवान और क्षणिक हैं। अवधूत वह जो अविद्या को छोड़ आत्मा के ज्ञान में स्थित रहता है ।

(परमात्मा हम गुरु और शिष्य की रक्षा और पालन करें। हम दोनों उस ज्ञान से वीर्य (ओज़) की प्राप्ति करें। हम वह पढ़े जो तेजस्वी हो । हम दोनों के बीच कभी परस्पर विद्वेष न हो ।)

गु याने अंधकार, रु याने नाश करने वाला । इसलिए जो अंधकार का नाश करता है, वही गुरु होता है।


एक बार आचार्य स्थूलिभद्र रात के अंधेरे में एक गणिका (वेश्या) के पास आते हैं। किंतु गणिका के १०० स्वर्ण मुद्राएं मांगने पर वह यह कहकर चले जाते हैं कि एक दिन वे उसे जरुर खरीदेंगे।

वह गणिका एक मंत्री से बेहद प्यार करती थी। वह मंत्री उसे मिलने आने का वादा करके भी नहीं आता। वह उस मंत्री का इंतजार करते-करते थक जाती है।

वह सोचती है कि मैं इतना इंतजार थोड़े से सुख के लिए कर रही हूं। अगर यही प्रेम मैंने उस ईश्वर के साथ किया होता तो वह ईश्वर भी मुझे मिल जाता । उसे बहुत पीड़ा होती है। उस गणिका को वैराग्य आ जाता है। वह इन पीड़ा भरी बातों को जिस वक्त कह रही थी तो आचार्य स्थूलिभद्र वहीं १०० मुद्राएं लेकर खड़े थे।

गणिका पिंगला के मुख से यह बातें सुनकर उनकी आंखें खुल गई। वे १०० स्वर्ण मुद्राएं दक्षिणा स्वरुप उस गणिका के चरणों में रखकर चले गए । आचार्य को गणिका में भी गुरु मिल गया। सच जानने वालों के लिए तो पूरा विश्व ही गुरु है। (वह पिंगला वेश्या तो अपना रूप बेचती थी और धन ऐंठती थी। ग्राहक से अधिक से अधिक धन उगाहना (निकालना) क्या हर युग में गणिकाओं का ही गुण रहा है ? हम भी तो ऐसे ही हैं। फिर चाहे हम कुछ भी बेचते हों। सोचिए हम किस श्रेणी में हैं?)

जीवन की पाठशाला में जिससे भी जो कुछ सीखो, वह गुरु होता है। आत्मज्ञान देने वाला सद्गुरु एक होता है । किंतु गुरु अनेक होते हैं। दत्तात्रेय ने पिंगला गणिका को अपना गुरु माना था। वैसे तो दत्तात्रेय के २४ गुरु थे।

१.
धरती- उनकी पहली गुरु यह धरती थी। धरती जो सभी को धारण करती है। सभी को समान रुप से आधार देती है। धरती से उन्होंने सीखा कि सभी को समान रुप से स्वीकार करो ।
 

२.वायु - वायु उनकी दूसरी गुरु थी । वायु से उन्होंने जाना कि साधक को वायु की तरह अच्छे-बुरे से अप्रभावित रहना चाहिए।

३.
आकाश- आकाश से उन्होंने जाना कि आत्मा आकाश की तरह सर्वव्यापी है। आत्मा भी सबसे अप्रभावित, निर्विकार अपनी समान अवस्था में रहता है।

४.
आग- आग से उन्होंने सीखा कि आग हर आहार ग्रहण करती है। हर चीज को भस्म कर उसे पवित्र कर देती है। ब्रह्म चिंतक को अग्नि की तरह आहार ग्रहण करना चाहिए। 

५. सूर्य- सूर्य से उन्होंने सीखा कि सूर्य की छाया अलग अलग पात्रों के जल में अलग-अलग दिखाई देती है। उसी प्रकार ये सारी सृष्टि उस एक आत्मा की विभिन्न छायाएं हैं।

६.
कबूतर- कबूतर- एक बार दत्तात्रेय ने देखा कि शिकारी के जाल में कबूतर के बच्चे फंस गए। कुछ देर बाद उन्हें छुड़ाने के लिए आई उनकी मां भी जाल में फंस गई उन कबूतरों से उन्होंने जाना कि किस प्रकार "मोह" विनाश को आमंत्रित करता है।

७. अजगर- अजगर उनका सातवां गुरु था। जिस प्रकार अजगर शिकार की तलाश में " यहां-वहां" नहीं भटकता। उसी प्रकार ज्ञान की अभिलाषा रखने वाले को सुख के पीछे यहां-वहां नहीं भटकना चाहिए।

८. समुद्र- समुद्र उनका आठवां गुरु था । जिस प्रकार समुद्र अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता, उसी प्रकार बुद्धिमान को अपनी नैतिक मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना  चाहिए। (हम इंसान भी कई मर्यादाओं का पालन करते हैं, अगर इन मर्यादाओं का पालन नहीं करेंगे तो इस संसार का रुप कुछ अलग हो जाएगा । समुद्र भी अपनी मर्यादा तोड़ता है तो सुनामी आ जाती है।)

९. पतंगा-
पतंगा मूर्ख व्यक्ति इंद्रियों के सुखों की आग में स्वयं को भस्म कर देता है। परंतु बुद्धिमान व्यक्ति ज्ञान की अग्नि में कूद कर अपने अज्ञान का नाश करके सीमित से असिमित हो जाते हैं।
 

१०. गज- हाथी को पकड़ने के लिए शिकारी नकली या पालतू हथिनी का प्रयोग करते हैं । साधक को काम के आवेग से दूर रहना चाहिए।

११. मधुआ (शहद इकट्ठा करने वाला)- मधुमक्खी शहद इकट्ठा करने में अपना समय गंवाती है। किंतु उसका उपभोग मधुआ करता है। इसलिए साधनों को इकट्ठा करने में समय नहीं गंवाना चाहिए। बल्कि स्वयं को समझने में समय खर्च करना चाहिए। (ऐसा न हो हम भी यात्रा में क्या- क्या सामान लगेगा, उसी में लगे रहें। मंजिल तो मिले ही नहीं। यह जीवन की यात्रा भी कुछ इस तरह की ही है। मंजिल तो हमारी उस ईश्वर के चरणों में ही है।)

१२. मछली-
मछली जिस प्रकार कांटे में फंसे पदार्थ के कारण मछली फंस जाती है, वैसे ही मनुष्य प्रलोभनों के कारण संकट में पड़ता है।


१३. गणिका पिंगला (वेश्या)- वह गणिका जिसने आचार्य स्थूलीभद्र को विवेक और वैराग्य से, भोग की नींद से जगाया । वह भी दत्तात्रेय की गुरु  थीं। क्योंकि सब सुखों को भोगने वाली उस वेश्या को भी वैराग हो गया था।

१४. तीर बनाने वाला- दत्तात्रेय ने जाना कि आत्मा पर एकाग्र करने पर ही संसार के प्रपंच को अनदेखा किया जा सकता है। (जैसे निशाना साधने पर सिर्फ तीरंदाज को सिर्फ वही चीज दिखती है जिसपर वह निशाना लगाता है। उसी प्रकार हमारी नजर भी हर वक्त उस आत्मा पर होनी चाहिए। तो ही हम भी इस संसार सागर से पार पहुंचेंगे।)

१५. छोटा बच्चा- दत्तात्रेय ने छोटे बच्चे को भी अपना गुरु माना था क्योंकि छोटा बच्चा मान-अपमान से, तेरा-मेरा से, अपने-पराए से दूर रहता है।

१६. चंद्रमा- जिस प्रकार चंद्रमा, सूर्य के प्रकाश को ही परावर्तित करता है। उसी प्रकार यह जीवात्मा उसी एक परमात्मा का प्रकाश है। (चंद्रमा में स्वयं का प्रकाश नहीं होता । उस पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है तब वह चमकता है। ये इंसान भी उसी परमात्मा का अंश है।)

१७. मधुमक्खी- जैसे मधुमक्खी फूलों को नुकसान पहुंचाए बिना शहद एकत्र करती है, वैसे ही अध्यात्म के पथिक को अनेक शास्त्रों से ज्ञान का रस एकत्र करना चाहिए।

१८. मृग  (हिरन)- इंद्रियों की कामना,इच्छाओं
की कामना दासता, (बंधन) का कारण होती है। (कस्तूरी मृग के अंदर ही सुगंध होती है, और वह उसे सुगंध की तलाश में भटक-भटक कर अंत में दम तोड़ देता है। कुछ पाने की लालच उसका जीवन खत्म कर देती है। मनुष्य भी सारी जिंदगी सुखों के पीछे भागता है कि यह चीज या वह सुख पा लूं तो सुखी रहूं । बस! इसी चाह में वह अंत में मर जाता है |

१९. बाज़ - जिस प्रकार मांस के एक टुकड़े के लिए कई शिकारी पक्षी मांस के टुकड़े पर टूट पड़ते हैं, ठीक वैसे ही भौतिक सुखों की होड़, संघर्ष को आमंत्रित करती है। (इंसान पूरी जिंदगी बाहरी सुखों की होड़ में संघर्ष ही तो करता है।)

२०. कन्या- एक बार कन्या का हाथ मांगने कुछ लोग उसके घर आए। उस समय माता-पिता घर पर नहीं थे। अतिथियों के भोजन के लिए उसने धान कूटना आरंभ किया तो उसके हाथों की चूड़ियों की खनक से अतिथियों को परेशानी न हो, इसलिए उसने अपने हाथों में एक-एक चूड़ी रख बाकी सब चूड़ियां हाथों से उतार लीं । इस घटना से दत्तात्रेय ने जाना कि दूसरे के होने से स्वर, शब्द खटकने लगते हैं । बजने लगते हैं। इसलिए साधक को अकेले रहना चाहिए।

२१. सर्प- सर्प घर नहीं बनाता । वैसे ही अध्यात्म के पथिक को अनिकेत (बेघर) रहना चाहिए।

२२. मकड़ी- जैसे मकड़ी अपने जाल की रचना करती है, उसमें विचरण करती है और अंत में उसे ही निगल जाती है। वैसे ही आत्मा अपने संसार की रचना करती है और उसी में विलीन हो जाती है।

२३. इल्ली
(caterpillar) - इल्ली निरंतर भ्रमर (भंवरा) को देखती रहती है। यह निरंतर भ्रमर की ओर ध्यान उसे भी भ्रमर बना देता है। गुरु और शिष्य की चेतना का संबंध ही दत्तात्रेय का २३ वां गुरु था।

२४. जल- जल सबकी प्यास बुझाता है। सभी को जीवित रखता है और हमेशा निचली जगह पर रहता है। वैसे ही बुद्धिमान को भी हमेशा नगण्य (बहुत कम)स्थान ग्रहण करना चाहिए।

 

SARAL VICHAR

एक टिप्पणी भेजें (POST COMMENT)

0 टिप्पणियाँ