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जब मां होती है तो उसके होने का अहसास नहीं होता | JAB MAA HOTI HAI TO USKE HONE KA AHSAAS NAHI HOTA । MISS YOU SO MUCH MY MOTHER... | SARAL VICHAR

 जब मां होती है तो उसके होने का अहसास नहीं होता | JAB MAA HOTI HAI TO USKE HONE KA  AHSAAS NAHI HOTA । MISS YOU SO MUCH MY MOTHER... - www.saralvichar.in

जब मां होती है तो उसके होने का अहसास नहीं होता

कल जब उठकर काम पर जा रहा था तो अचानक लगा कि कोई रोक लेगा मुझे और कहेगा 

खड़ा-खड़ा दूध मत पी, हजम नहीं होगा। 

२ घड़ी सांस ले ले । अरे, इतनी ठंड और कोट भूल गया, इसे भी अपने पास ले ले। 

मन में सोचा, मां रसोई से बोली होंगी। 

उसके हाथों में सना आटा होगा और पलट के देखा तो क्या मालूम था कि वहां सिर्फ सन्नाटा होगा । 

अब हवाएं ही तो बात करती हैं मुझसे ।

 लगता है जब जाऊंगा किसी खास काम से तो कोई कहेगा दही-शक्कर खा ले बेटा, अच्छा शगुन होता है। 

कोई कहेगा कि गुड़ खा ले, अच्छा शगुन होता है। 

पर मन इसी बात को रोता है..

कि सब कुछ है मां... सब कुछ.. जिस आजादी के लिए मैं तुमसे सारी उम्र लड़ता रहा, 

वह सारी आजादी मेरे पास है।

(माएं बचपन में टोकती हैं, यह मत कर, वह मत कर, यहां मत जा, वहां मत जा, यह मत खा, उससे मत मिल । हम इतने परेशान हो जाते हैं कि आजादी चाहते हैं और आजादी की कीमत....???)

जिस आजादी के लिए मैं तुमसे उम्र भर लड़ता रहा वह सारी आजादी मेरे पास है, फिर भी न जाने क्यों दिल की धड़कन उदास है। 

कहता था ना तुझसे, मैं वही करूंगा जो मेरे जी में आएगा।

मैं आज वही सब कुछ तो करता हूं जो मेरे जी में आता है। 

बात यह नहीं है कि मैं जो चाहूं कर लूं , मुझे रोकने वाला कोई नहीं है।

  बात है तो इतनी-सी है कि सुबह देर से उठूं तो कोई टोकने वाला नहीं है।

रात को देर से लौटूं तो कौन नाराज होगा भला? कौन कहेगा बार-बार कि अब कहां चला?

दोस्तों के साथ घूमने पर उलाहने कौन देगा? मेरे वो तमाम बहाने कौन देगा?

 कौन कहेगा इस उम्र में परेशान क्यों करता है? हाय राम! यह लड़का क्यों नहीं सुधरता है।

 पैसे कहां खर्च हो जाते हैं तेरे, क्यों नहीं बताता है।

सारा दिन मुझे सताता है, रात को देर से आता है। खाना गर्म करने को जागती हूं। खिलाने को तेरे पीछे भागती रहूं। 

बहाती रहूं आंसू तेरे लिए, कभी कुछ सोचा है मेरे लिए।

खैर, मेरा तो क्या होना है, और क्या हुआ है, तु खुश रह लेना, यही दुआ है। और... 


तमाम खुशियां ही खुशियां...

गम यह नहीं है कि कोई ये खुशियां बांटने वाला होता, पर कोई तो होता जो गलतियों पर डांटने वाला होता। 

पर कोई तो होता... जो गलतियों पर डांटने वाला होता।

तू होती तो हाथ फेरती सर पर या हल्के से बाम लगाती, आवाजें दे-देकर सुबह उठाती । 

दिवाली पर टीका लगाकर रुपए देती और कहती बड़ों के पांव छूना आशीर्वाद मिलेगा । 

कपड़े मत फाड़ना, अगला कपड़ा अगली दिवाली को सिलेगा।

बहन को सताता तो चाटें मारती, बीमार पड़ता तो रो-रोकर नजरें उतारती । 
परिक्षा से आते ही खाना खिलाती। पिता की डांट का डर दिखाती, फिर पिता की डांट से ही तू बचाती।


इसे नौकरी मिल जाए, यह तरक्की करे, दुआओं में हाथ उठाती, और तरक्की के लिए घर छोड़ देगा...

 यह सुनकर दरवाजे के पीछे चुपके से आंसू बहाती।

सब कुछ है माँ सब कुछ . ... । आज तरक्की की हर रेखा तेरे बेटे को छूकर जाती है, 

पर माँ तेरी बहुत याद आती है। पर मां तेरी बहुत याद आती है...

-शैलेश लोढा

 

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