Ticker

7/recent/ticker-posts

रावण के दस चेहरे | RAAWAN KE DUS CHEHRE | TEN FACES OF RAVANA | SARAL VICHAR

रावण के दस चेहरे

मन रावण है और रावण के दस चेहरे होते हैं। यही दस चेहरे, इंसान के अंदर छिपे हुए दस जानवरों (विकारों) के प्रतीक हैं।
 

रावण के दस चेहरे | TEN FACES OF RAVANA - www.saralvichar.in

कुछ चेहरे सिर्फ दिमाग में होते हैं उन्हें लोग नहीं देख पाते |

 

1. अहंकार का ऊंट 

अहंकार मन का अति सूक्ष्म विकार है, मन की मूल बीमारी है। जब 'मैं और मेरे' का अहंकार भाव जगता है तब माया के जगत का निर्माण होता है। जितना अहंकार ज्यादा होगा, उतना बड़ा 'मैं' होगा। अहंकार ही जड़ है, जो क्रोध और दुःख का मूल कारण है।

व्यक्ति जब स्वयं को भूलकर, स्वयं को शरीर मानकर जीता है, तब ही उसके मन में अहंकार का ऊंट आकर बैठता है।

2.  द्वेष का दीमक

द्वेष अर्थात 'जलन', दूसरे का नुकसान करने की भावना। किसी की सफलता को देखकर द्वेष का दीमक कुछ लोगों के अंदर सरकने लगता है। किसी को धन मिले तो, अंदर जलन होने लगती है। कोई कार खरीद ले, कोई सुंदर मकान बना ले, कोई परीक्षा में प्रथम आ जाए तो द्वेष निर्माण होता है।

द्वेष के दीमक के साथी हैं, ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा। किसी को सफलता मिली है तो खुश होना है, उसके आनंद में सहभागी होना है। ईश्वर को धन्यवाद देना है। क्योंकि यह निसर्ग का नियम है कि किसी के शुभ को देखकर हम खुश होते हैं तो हमारे जीवन में भी शुभ होने लगता है। तो दूसरे की सफलता से प्रेरणा लें, ना कि ईर्ष्या और द्वेष करें।

3. भ्रम का भेड़िया

कहते हैं भ्रम का इलाज लुकमान हकीम के पास भी नहीं था। 'भ्रम' मन का एक विनाशक हथियार है।

जैसे किसी को बिमारी न हो, फिर भी वह समझे कि 'मैं बीमार हूँ' ऐसे व्यक्ति के लिए कोई औषधि नहीं है। सारे डॉक्टर हार जाएंगे, मगर वह ठीक नहीं हो सकता है।

इस भ्रम का दूसरा रुप है 'शंका' । शंका के कारण कोई किसी पर विश्वास नहीं करता। वह शत्रु पर ही नहीं, मित्र पर भी शंका करता है। उसे अपनी पत्नी पर शक होता है, बच्चों पर शंका आती है। ऐसा व्यक्ति न केवल अपना जीवन, बल्कि औरों का जीवन भी जहर से भर देता है। ना वह शांति से जी पाता है, न औरों को सुख से रहने देता है। ऐसा इंसान जहाँ भी जाएगा वहाँ परेशानियाँ ही पैदा करेगा।

4. ग्लानि की गिलहरी

ग्लानि की गिलहरी छोटी दिखती है, परंतु बड़े विनाश का कारण बन सकती है। ग्लानि यानि मन में अपराध बोध की भावना रहना।

इतिहास गवाह है कि हिटलर, जो जर्मनी का तानाशाही (डिक्टेटर)
सम्राट था, वही जिम्मेदार था पिछली सदी के दोनों महाभारी युद्धों के लिए। 

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि वह आत्म-ग्लानि व न्यूनगंड (Infinity Complex) से पीड़ित था। इसी बिमारी के कारण उसने यह सिद्ध करना चाहा कि 'मैं उत्कृष्ट हूँ'। परिणाम स्वरूप लाखों बेकसूर मारे गए, निर्दोष बच्चों की हत्याएं हुईं। 

इसके कारण कितने लोग मानसिक रोगों से पीड़ित हैं। तनाव, मानसिक अस्थिरता, अनिद्रा इसके परिणाम हैं।

5. भय का भालू

मन में भय का भालू निरंतर भय का वातावरण निर्माण करते रहता है। भय यानि उन चीजों से डरना, जिनसे डरने की आवश्यकता नहीं है। जैसे कॉकरोज, छिपकली, पानी, लोग, शिक्षक, इंजेक्शन, ऊंचाई, असफलता, भविष्य इत्यादि ।

 मूल भय है 'मृत्यु का भय'। याने इन सब बातों के पीछे हमें ये ही लगता है कि हमें कुछ हो न जाए ।  जब यह समझ में आता है कि 'मृत्यु है ही नहीं', तो कोई भय बाकि नहीं रहता। भय का भालू तुम्हारे जीवन से भाग जाता है और तुम निर्भय जीवन जीने लगते हो।

6. लोभ की लोमड़ी

लोभ अर्थात लालच। मांगना मन का स्वभाव है। इस जगत में सबसे बड़ा भिखारी है मन। जिसकी मांग सदा जारी ही रहती है कि 'और मिले... और मिले' यहाँ तक ही नहीं उसे जब मिलने लगे तो, सोने के अंडो के लिए वह मुर्गी को भी काटने को दौड़ता है।  इसी लोभ के कारण ही इंसान चोरी, डकैती, लूट और जुआ जैसी निर्रथक आदतों में गिर जाता है।

आज का मनोविज्ञान इस बात से चिंतित है कि आने वाली पीढ़ी का जिस आदत से विनाश होगा वह है 'जुआ'। आजकल वह शेअर बाजार के नाम से जाना जाता है। कैसे उसे इस आदत से बचाया जाए...? और जुआ का सबसे बड़ा कारण है 'लोभ की लोमड़ी', जो बिना कुछ किए ‘धन मिल जाने' की अपेक्षा करती है कि रातों-रात मैं करोड़पति हो जाऊं। 

अगर इस लोभ की लोमड़ी से आने वाली युवा पीढ़ी को नहीं छुड़ा पाए तो शायद वह सबसे बड़े विनाश में गिर जाएंगी, उनका भविष्य अंधकार पूर्ण होगा।
 

7. तुलना का तोता

तुलना का तोता है 'तोलू मन' जो हर घटना को, हर वस्तु को दो में विभाजित करता है। यह भी मन का एक बड़ा हथियार है। कोई घटना घटी नहीं कि तुरंत मन आकर कहता है 'यह अच्छा हुआ, यह बुरा हुआ'।

 मन की चंचलता इसी तुलना का परिणाम है। इसी तुलना के कारण मन स्थिर नहीं हो पाता है। मन की चंचलता का तो हमें अनुभव होता है, मगर मन की स्थिरता का कोई अनुभव नहीं हो पाता है। यदि अपनी तुलना करनी ही हो, तो उन लोगों से करो जिनका लक्ष्य भी वही है, जो तुम्हारा है, इससे प्रेरणा मिलेगी। अज्ञान में की गई तुलना दुःख का कारण बनती है।

8. निराशा का नाग 

मनुष्य का मन जल्द ही निराश हो जाता है। इच्छाएं पूरी न हुई तो मन निराश होता ही है। लेकिन इच्छा पूरी हो, तो भी मन निराश हो जाता है। निराशा, इच्छा का ही फल है। मन इच्छा करता है कि महल मिल जाए, नहीं मिलता तो निराश हो जाता है। अगर मिल जाता है, तो खुश हो जाता है परंतु थोड़ी देर के लिए...। फिर जल्द ही निराशा जकड़ लेती है। पूछ लेना जिनके पास महल है, 'क्या वे निराश नहीं होते हैं?' देख लेना उन्हें, जिनके पास कारें हैं, सभी सुख-सुविधाएं हैं, क्या वे निराश नहीं होते हैं?' क्योंकि जब तक इच्छा नहीं मिटती, तब तक निराशा भी नहीं मिट सकती। निराशा, इच्छा का ही परिणाम है। इच्छा अगर बीज है, तो निराशा फल है। जब तक इच्छा के बीज बोते रहेंगे, तब तक निराशा के फल आते ही रहेंगे।

9. घृणा का घोड़ा 

 घृणा, नफरत मन का एक भयानक चेहरा है। दो तरह की घृणाएं मन करता है। एक स्वयं से घृणा करने लगता है जिसे 'आत्म-ग्लानि' (Infinity Complex) भी कहते हैं। 

दूसरा औरों से इस भाव से कि 'मैं औरों से उत्कृष्ट (superior) हूँ। दूसरा मुझसे तुच्छ है।  दोनों ही मन की बिमारियाँ हैं। परिणाम स्वरुप घृणा का जन्म होता है।

 घृणा करने वाले व्यक्ति का विकास रुक जाता है। जिन समाजों में इस तरह का रोग पाया गया है, उनकी उन्नति नहीं हुई, परंतु उनका गिरना (पतन) ही हुआ है। 


10. गुस्से का गुरिल्ला

क्रोध की धारा में, क्षण भर में मनुष्य अपने वर्षों के श्रम, अनुभव और सफलताओं को नष्ट कर डालता है। कई बार अपने ऊंचे पद (ओहदे) से भी त्याग पत्र दे बैठता है और जिंदगीभर उन गलतियों पर आंसूं बहाता है।

एक सर्वेक्षण द्वारा यह पाया गया कि जेल में कैद अपराधियों में से 80 प्रतिशत से भी ज्यादा कैदी अपने किये पर पछता रहे हैं। उनका कहना था कि एक क्षण के क्रोध ने उनका जीवन बरबाद कर दिया। क्रोध एक क्षणिक पागलपन है।


सरश्री तेज पारखी जी

 

SARAL VICHAR

 

 


 

एक टिप्पणी भेजें (POST COMMENT)

0 टिप्पणियाँ