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किशोरावस्था में क्या करें | KISHORAVASTHA ME KYA KARE? (CHANAKYA) | What To Do In Adolescence (Chanakya) In Hindi By Saral Vichar


किशोरावस्था में क्या करें  | KISHORAVASTHA ME KYA KARE? (CHANAKYA) |  What To Do In Adolescence (Chanakya) In Hindi By Saral Vichar

13 से 19 साल की उम्र होती है किशोर वय की। उस समय वह न बच्चा होता है न जवान। इस समय घर के लोग समझाएं तो बुरा लगता है पर बाहर के व्यक्ति समझाएं तो अच्छा लगता है।

बाहर वाला बहकाकर कुछ भी करवा सकता है। लेकिन घरवाले समझाएं तो दुश्मन लगते हैं। यही समय है जब बच्चा बहुत कुछ बन सकता है। इस समय अगर हम उन्हें संभाल लें तो वह आसमान छू सकता है।

सबसे पहले विद्यार्थी को अपना लक्ष्य तय करना चाहिए। पहले उसे सब ठीक लगता है। वह निश्चय नहीं कर पाता कि वह क्या करे, क्या न करे। क्या बने ? डॉक्टर, इंजिनियर, नौकरी, व्यवसाय। यह जरुरी नहीं कि सब आपका चाहा हुआ हो जाए। जो विद्यार्थी हैं उनके ये पांच लक्षण हैं।

1. कौए जैसी चेष्टा। कौए में चंचलता रहती है पर वह सतर्क रहता है। वह सतर्क भी है। दूरदर्शी भी है। खतरे को जानता है। जीवन में बहुत स्थानों पर चोट खा सकता है। गिर सकता है। कष्ट उठा सकता है। जो व्यक्ति इस बात के लिए सावधान रहता है मैं कहां चोट खा सकता हूँ कहाँ पर नहीं, वह अपने को व्यर्थ की बातों में न उलझाकर आगे ले जाएगा। विद्यार्थी को चाहिए वह अपने लक्ष्य प्राप्ति की ओर सदैव सजग रहे।

जो विद्यार्थी होस्टल में रहते हैं, पढ़ते हैं उनसे फोन से बातें न करके पत्रों से बातें करें। उन्हें हौसला दें कि तुम तपस्या करने गए हो। थोड़े दिन तुम्हें कष्ट उठाना पड़ेगा। पर जब तुम कुछ बनकर बाहर आओगे तो आने वाला कल तुम्हारा होगा।

पेड़ से टूटा हुआ पत्ता, विद्यालय से भागा हुआ विद्यार्थी बहुत पछताते हैं। टूटे बिखरे पत्तों की कोई शोभा नहीं होती। चीजें अपने स्थान पर ही शोभा पाती हैं। तुम भी अपनी मर्यादा, अपना लक्ष्य मत भूलना।

2. बगुले जैसा ध्यान - वही विद्यार्थी सफल होता है जो अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में रखता है।

3. कुत्ते जैसी नींद - कम से कम नींद ले। आलसी बनकर न पड़े रहे। जल्दी सोकर जल्दी उठे। व्यायाम जरूर करे। 5 ये 8 घंटे सोए।

4. कर्म पर विश्वास- भाग्य का रोना मत रोईए। कर्म पर विश्वास किजिए। संघर्ष ही जीवन है। बिना संषर्ष के जीवन में सुंदरता आ ही नहीं सकती।

5. लक्ष्य को बार-बार बदलना- छोटी-छोटी कठिनाईयों से घबरा जाना, हीन भावना से पीड़ित होना, निर्णय लेने की क्षमता का अभाव आदि निर्बल इच्छाशक्ति के दुष्परिणाम स्वरुप ही सामने आता है। लेकिन जो दृढ़निश्चयी हैं वह अपने लक्ष्य पर अडिग रहता है। कैसी भी कठिनाईयां आएं वह सहजपूर्वक स्वीकार करके उसे दूर करने की कोशिश करता है।

बच्चे कहते हैं कि हम बिजनेस करेंगे। इसलिए वह पढ़ाई पर कम ध्यान देते हैं। पर अगर उनसे कहा जाए कि पढ़ाई करने से हमारा दिमाग और ज्यादा खुले विचार वाला होता है। हम उस समय सही निर्णय ले पाते हैं।
जैसे धीरूभाई अंबानी का नाम तो आपने सुना ही होगा तो उनके बेटे पढ़े लिखे थे तो उन्होंने उनके बिजनेस को और आगे बढ़ाया। तो... इसीलिए बिजनेस में भी पढ़ना बहुत जरूरी है।

कुछ लोग कहते हैं कि बिजनेस करना बहुत मुश्किल हो गया है। इसलिए कम से कम पढ़ाई करके कोई अच्छी सी नौकरी तो कर ही सकते हैं। बिना पढ़ाई के तो कोई अच्छी नौकरी भी नहीं मिलती।
कहने का तात्पर्य ये ही है की पढ़ना हर हाल में अच्छा होता है 

नेपोलियन कहता था- असंभव कुछ भी नहीं। दृढ़ इच्छा शक्ति होनी चाहिए। शुरु में आप छोटे संकल्प लें। उन्हें पूरा करें। चाहे वह संकल्प प्रतिदिन दो घंटे पढ़ने का ही क्यों न हो। बाद में आप बड़े संकल्प ले सकोगे ।

एक बार अर्जुन ने कृष्ण से पूछा- माधव.. ये 'सफल जीवन' क्या होता है ?
कृष्ण अर्जुन को पतंग उड़ाने ले गए।
अर्जुन कृष्ण को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था।
थोड़ी देर बाद अर्जुन बोला- माधव.. ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें ? ये और ऊपर चली जाएगी|

कृष्ण ने धागा तोड़ दिया .. पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई...
तब कृष्ण ने अर्जुन को जीवन का दर्शन समझाया...
पार्थ.. 'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं..
हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं।
जैसे - घर-
-परिवार-
-अनुशासन
-माता-पिता
-गुरू- और
-समाज-
और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं, वास्तव में यही वो धागे होते हैं - जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं।
इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे.. परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिना धागे की पतंग का हुआ।
अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना।
धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही 'सफल जीवन' कहते हैं।

SARAL VICHAR

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