आप कितना भी पैसा दें, नौकरानी.. घर की तरह झाडू लगाती नहीं और
चपाती वाली आपकी तरह चपाती बनाती नहीं।
माता-पिता जैसा कोई साया नहीं और भाई-बहन जैसा प्यार नहीं..
होटल की बिरयानी में घर की खिचड़ी जैसा स्वाद नहीं...
और कितना भी YouTube देख लें, थिएटर सा अनुभव नहीं ..
साड़ी सी शान किसी पोशाक में नहीं...
और आप कितना भी श्रृंगार कर लें.. सादगी की तुलना नहीं..
कितने भी कलम लगा लो.. गाँव जैसा गुलाब नहीं
चाहे कितना ही इत्र ले आओ, जुई और मोगरे का कोई तोड़ नहीं ..
खेत जैसा कोई बगीचा नहीं और बगीचे जैसी कोई छत नहीं।
सब्जी रोटी का स्वाद पिज्जा बर्गर में नहीं
और खुले मैदान सा आनंद किसी जिम में नहीं।
एक तरफा प्यार जैसा कोई मासूम प्यार नहीं
और जीवन में प्यार करने वाले साथी जैसा कोई सहारा नहीं ..
कितना भी टैली यूज कर लें.. प्रॉब्लम नहीं पर..
गुणा, भाग, पहाड़ा का मजा कैलकुलेटर में नहीं ..
कितनी भी कड़ी मेहनत कर लें, किंतु भाग्य के बिना कुछ भी नहीं ..
कितने भी चतुर क्यों न हों, ईश्वर के आगे किसी की चलती नहीं..
बिना बारिश के पेड़ खिलते नहीं , बिना इंसान के पैसे चलते नहीं..
सच्चे प्यार के बिना प्यार की मिठास नहीं ,
पसंद के व्यक्ति से बात किए बिना मन में सुकून नहीं ।
अनुभव जैसा शिक्षक कोई नहीं, और जिंदगी जिए बिना जीना आता नहीं,
बच्चों के बिना घर में रौनक नहीं, और नाती-पोते जैसा परमानंद दुनिया में नहीं।
शालीनता जैसा गहना कोई नहीं, और झोपड़ी जैसा प्यार बंगले में नहीं।
स्वार्थ से बड़ा दुश्मन कोई नहीं, और परोपकार जैसा पुण्य कोई नहीं।
सुख के क्षण में लोगों के बिना शोभा नहीं, दुख में अपना कौन यह पता चलता नहीं।
भक्ति जैसी शांति किसी में नहीं, और भगवान जैसा बलवान कोई नहीं।
घर सा प्यार वृद्धाश्रम में नहीं, और बुढ़ापे में परिवार के बिना कोई नहीं।
SARAL VICHAR
0 टिप्पणियाँ