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सिकंदर और फकीर की कहानी | SIKANDAR AUR FAKIR KI KAHANI | Story Of Sikandar And Fakir In Hindi By Saral Vichar

सिकंदर और फकीर की कहानी | SIKANDAR AUR FAKIR KI KAHANI | Story Of Sikandar And Fakir In Hindi By Saral Vichar


बात उस समय की है जब सिकंदर पूरे विश्व को विजय करने निकला था। जब वह भारत आया तो यहां के ऋषियों से भी मिला।

ऋषियों ने उसे धिक्कारा कहा कि- हर व्यक्ति के अधिकार में केवल उतनी ही भूमि है जितनी पर हम खड़े हैं। किंतु तुम हमारे जैसे मानव होते हुए भी दुष्टता से इस पृथ्वी की शांति भंग करना चाहते हो। तुम व्यर्थ हर अपने घर से कोसों दूर अपने आप और हम सभी को कष्ट देने चले आए हो। जब तुम्हारी मृत्यु होगी तो तुम्हारे पास केवल उतनी ही भूमि होगी जितनी कि तुम्हें गाड़ने के लिए पर्याप्त होगी।

ऐसी कई बातें जो ऋषियों ने उसे कही थी जैसे- 

सिकंदर ने एक ऋषि से पूछा- तुम्हें क्या चाहिए? मैं तुम्हें दुनिया की हर चीज दे सकता हूं। बोलो क्या चाहिए?

ऋषि बोला- तुम जहां खड़े हो वहां से हट जाओ। मैं तो तुम्हारे आने से पहले धूप सेक रहा था। तुम्हारे बीच में आने से वह मेरी ओर नहीं आ रही।
 

उसका मन बदल गया और वह वापस यूनान चला गया। कहते हैं कि उसके मन में इतना पश्चाताप हुआ कि मैंने कितने लोगों का व्यर्थ खून बहाया है। पश्चाताप में उसने बीच रास्ते में ही प्राण त्याग दिए।

उसने कहा था कि जब मैं मरुं तो मेरे दोनों हाथ मेरे जनाजे से बाहर रखना ताकि लोग देंखें और सीखें कि जिसने विश्व को विजय किया वह भी इस दुनिया से खाली हाथ जा रहा है।

सिद्धांत- आज का मनुष्य भी दौड़ता है धन के पीछे। सोचता है कि धन कमा लूं फिर इसका भोग करूंगा। जब होश आता है तो तन में ताकत नहीं रहती कि धन का उपभोग कर सके। जवानी में दौलत के पीछे भागकर अपने शरीर को बिमार बना लेता है, जब बच्चे छोटे थे तो कमाने के चक्कर में बच्चों पर ध्यान नहीं दिया। जब वह चाहता है कि बच्चों पर ध्यान दूं तो बच्चे बड़े हो चुके होते हैं। अब बच्चे उसपर ध्यान नहीं देते। अफसोस !

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डायोजनेस एक अद्भुत एवं आनंदित अवस्था में मतवाले रहने वाले भिक्षुक थे, वे ग्रीस में एक नदी किनारे रहते थे। किसी ने उन्हें एक सुंदर भिक्षापात्र दिया था और वे सिर्फ एक लंगोट पहनते थे। वे मंदिरों के द्वारों पर भिक्षा मांगते थे और जो भोजन उन्हें मिलता था, वही खाते थे। एक दिन, वे अपना भोजन खत्म करके नदी की ओर जा रहे थे, तभी एक कुत्ता उनसे आगे निकला, दौड़कर नदी में गया, थोड़ा तैरा, फिर रेत पर आया और खुशी से लोटने लगा। उन्होंने यह देखा और सोचने लगे, ‘हे भगवान! मेरी ज़िन्दगी तो कुत्ते से भी बदतर है’! वे पहले ही आनंदित थे, मगर वे कह रहे थे कि उनका जीवन कुत्ते से भी बदतर है क्योंकि कई बार उन्हें लगता था कि वे बस नदी में कूद जाएं पर उन्हें अपने लंगोट के भीग जाने और भिक्षापात्र के खो जाने की चिंता होती थी। उस दिन उन्होंने अपना भिक्षापात्र और लंगोट फेंक दिया और पूरी तरह नग्न अवस्था में रहने लगे।

डायोजनेस एक अद्भुत एवं आनंदित अवस्था में मतवाले रहने वाले भिक्षुक थे, एक दिन, जब वे आनंदित अवस्था में नदी किनारे लेटे हुए थे, तभी सिकंदर उधर से गुज़रा। सिकंदर को ‘सिकंदर महान’ कहा जाता है। मैं उसको एक तीसरा नाम देना चाहूंगा – ‘सिकंदर महामूर्ख’। क्योंकि वह ऐसा शख़्स था जिसने जीवन को बर्बाद किया - अपना भी और दूसरे लोगों का भी। उसने सोलह साल की उम्र में युद्ध करना शुरू कर दिया था। अगले सोलह साल तक वह बिना रुके लगातार लड़ता रहा, रास्ते में आने वाले हज़ारों लोगों का कत्ल किया। बत्तीस साल की उम्र में वह बहुत दयनीय हालत में मरा, क्योंकि वह सिर्फ आधी दुनिया को जीत पाया था, बाकी आधी दुनिया अब भी बची थी। सिर्फ एक महामूर्ख ही इस तरह सोलह साल तक लड़ सकता है।

सिकंदर को ‘सिकंदर महान’ कहा जाता है। मैं उसको एक तीसरा नाम देना चाहूंगा – ‘सिकंदर महामूर्ख’। क्योंकि वह ऐसा शख़्स था जिसने जीवन को बर्बाद किया - अपना भी और दूसरे लोगों का भी। 
 
सिकंदर ऊंची आवाज़ में लगभग चिल्लाया, ‘ तुम्हारे शरीर पर कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं है। तुम पशु की तरह हो। तुम आख़िर किस चीज़ को लेकर इतने आनंदित हो?’ 
डायोजनेस ने ऊपर उसकी ओर देखा और उससे एक सवाल पूछा जो कोई आम आदमी किसी सम्राट से पूछने की हिम्मत नहीं कर सकता था। उन्होंने पूछा, ‘क्या तुम मेरी तरह होना चाहोगे?’ इस सवाल ने सिकंदर को बहुत गहराई तक प्रभावित किया, वह बोला, ‘हाँ, मुझे क्या करना होगा?’ 

डायोजनेस बोले, ‘उस घोड़े से नीचे उतरो, ये सम्राट के कपड़े उतारो और उन्हें नदी में फेंक दो। यह नदी तट हम दोनों के लिए बहुत बड़ा है। मैं इस पर कब्जा नहीं कर रहा हूं। तुम भी लेटकर आनंदित हो सकते हो। कौन तुम्हें रोक रहा है?’ 

सिकंदर बोला, ‘हाँ, तुम जैसा होकर मुझे बहुत अच्छा लगेगा, लेकिन मेरे पास वह करने का साहस नहीं है जो तुम कर रहे हो।’

इतिहास की किताबों ने हमेशा बताया है कि सिकंदर बहुत साहसी था। फिर भी सिकंदर ने स्वीकार किया कि उसमें वह करने का साहस नहीं था जो डायोजनेस कर रहे थे। तो सिकंदर ने जवाब दिया, ‘मैं अगले जन्म में तुम्हारे साथ आऊँगा।’ उसने अगले जन्म तक के लिए उसे टाल दिया। अगले जन्म में, कौन जानता है कि वह क्या बना – हो सकता है वह कॉकरोच बन गया हो। आप इंसान के रूप में एक संभावना के साथ आए हैं। अगर आप उसे गँवा दें और सोचें कि आप अगली बार उसे कर लेंगे, तो अगली बार किसने देखा है?

एक क्षण के लिए सिकंदर इस संभावना के करीब आया था, मगर फिर उसने इसे टाल दिया। इस घटना के कारण, उसके अंदर एक तरह की उदासीनता आ गई। वह अपने जीवन के अंत में युद्ध के लिए जुनून खो बैठा, मगर फिर भी आदतन वह लड़ता रहा। जुनून खत्‍म हो जाने के बाद उसकी ताक़त कम हो गई और वह मर गया। अपनी मौत से ठीक पहले, उसने अपने सैनिकों को एक अजीब हिदायत दी। उसने कहा, ‘जब मेरे लिए ताबूत बनाया जाए, तो उसके दोनों ओर दो छेद होने चाहिए ताकि मेरे दोनों हाथ ताबूत के बाहर हों, और सबको यह पता चले कि सिकंदर महान भी इस दुनिया से खाली हाथ ही गया।’ 

उसने अपने जीवन में यही एक समझदारी का काम किया।

आप अपने जीवन में समझदारी का एक काम करने के लिए आखिरी क्षण का इंतज़ार मत कीजिए। इसमें बहुत ज़्यादा देर हो सकती है। अभी वह समय है, जब सब कुछ आपके हाथ में है। जब आपकी क्षमताएं आपके नियंत्रण में होती हैं और जब जीवन अच्‍छा होता है, तभी जीवन को गहराई में देखने का समय होता है, तब नहीं जब चीज़ें बिगड़ जाती हैं। अधिकांश लोग अपने जीवन को गहराई से तभी देखते हैं, जब स्थितियां बिगड़ जाती हैं या उनके साथ कोई हादसा होता है। जब स्थितियां बिगड़ती हैं, तो आप भले ही इच्‍छुक हों, मगर आप आवश्यक ऊर्जा और ध्‍यान केंद्रित करने में असमर्थ हो जाते हैं। जब सब कुछ ठीक हो, तब आपको इस जीवन को जितना हो सके, उतनी गहराई में देखना चाहिए।

-सद्‌गुरु

SARAL VICHAR
 

 

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